छोटी बहन का अपने दीदी से संवाद: तुम्हारी ही तरह मैं
-Dr.Dilip Girhe
'तुम्हारी ही तरह मैं'
तुम्हारी ही तरह मैं गोबर फेंकती हूँ
तुम्हारी ही तरह मैं काम करती हूँ
तुम्हारी ही तरह मैं भी नाचूँगी
दीदी, हे दीदी
अपनी ही तरह मेरा जूड़ा बाँध दो
अपनी ही तरह मेरा आँचल संवार दो
तुम्हारे पास रहकर
तुम्हारी ही तरह बनकर
तुम्हारी संगति में रहूँगी
दीदी, हे दीदी
अपनी ही तरह मेरा जूड़ा बाँध दो
अपनी ही तरह मेरा आँचल संवार दो
संयोग से अगर तुम्हें अच्छा लगे
संयोग से अगर तुम्हें मंजूर हो
तुम्हारे साथ मैं सौतन बनकर रहूँगी
दीदी, हे दीदी
अपनी ही तरह मेरा जूड़ा बाँध दो
अपनी ही तरह मेरा आँचल संवार दो।
-रामदयाल मुंडा
कविता का संवाद पक्ष:
संवाद करने से दो व्यक्तियों में सकारात्मक या नकारात्मक बातचीत होती है। संवाद से व्यक्ति-व्यक्ति के संबंध भी मजबूत होते हैं। साहित्य के क्षेत्र में आज 'संवाद' और 'संवेदनशीलता' ज्यादा दिखाई दे रही है। साहित्य में काव्य विधा ने संवादात्मक शैली को काफ़ी महत्व दिया है। इस शैली से दो गुटों का संबंध दिखाई पड़ता है। गैर आदिवासी साहित्य के बतौर वर्तमान में आदिवासी साहित्य में भी संवाद शैली का उपयोग हुआ है। शायद इससे कविता का पक्ष भी अधूरा रह सकता था। यह संवाद व्यक्ति, वस्तु, पदार्थ या प्रतीकात्मक रूप में कवि किसी से भी कर रहा है। जिससे दो संबधों की बातचीत आगे आ रही है। वह बातचीत किसी भी प्रकार की हो सकती है। आदिवासी लेखक रामदयाल मुंडा ने भी अपनी कविता 'तुम्हारी ही तरह मैं' में भी इसी प्रकार का संयोग स्थापित किया है।
उन्होंने 'तुम्हारी ही तरह मैं' कविता में एक छोटी बहन का अपनी बड़ी दीदी के साथ संवाद का मार्मिक चित्रण किया हुआ मिलता है। वे इस कविता के माध्यम से 'अनुकरण' सिद्धान्तों के विविध पक्षों को स्थापित करना चाहते हैं। चाये वह पक्ष पारिवारिक हो या प्राकृतिक हो। पारिवारिक अनुकरण प्रिय पक्षों को सुंदर ढंग से कवि ने अपनी कविता में प्रस्तुत किया है। पारिवारिक अनुकरण सिद्धांतों में 'संस्कार' नामक गुण बहुत महत्वपूर्ण होता है। यदि यह गुण ठीक न हो तो यह सिद्धांत असफलता की कगार पर दिखाई देता है। कवि ने एक सफल पारिवारिक अनुकरणीय गुणों को प्रस्तुत काव्य में अभिव्यक्त किया है। छोटी बहन बड़ी दीदी से संवाद करती है कि "हे दीदी मैं आपकी तरह ही जुड़ा बाँधकर आँचल संवारने के लिए तैयार हूँ। इसके साथ मैं आपकी तरह ही हर एक काम करना चाहती हूँ। जिससे अपना परिवार या घर सुधार सकें। और एक ऊंचाई के पथ पर जाकर प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर सकें। मैं आपके सानिध्य में ही रहकर आपके मार्ग से चलना चाहूंगी और प्रत्येक काम को आपके जैसे ही करना चाहूँगी।"
इस प्रकार से कवि रामदयाल मुंडा छोटी बहन का बड़ी दीदी से अनुकरणीय संवाद सिद्धांत को अपने कविता के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं।
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