महादेव टोप्पो ने अपनी 'कब तक' कविता में उपस्थित किया पहचान का प्रश्न
-Dr. Dilip Girhe
'कब तक'
कई पंचवर्षीय योजनाओं के
इस जंगली इलाके में लागू होने के बाद
अब लोग कहते हैं
हम सभ्य हो रहे हैं
हम शिक्षित हो रहे हैं
हमारी राजनीतिक, सामाजिक चेतना
हो रही है धारदार
और कुछ ही वर्षों में शायद
मुख्यधारा में हो जायेंगे हम शामिल
शायद हमारी बुद्धि का वजन
उनकी उदार नज़रों में
कुछ ग्राम से कुछ ग्राम और बढ़ जायगा
लेकिन एक सवाल तब भी बचा रहेगा-
इस देश में कास्ट सर्टिफिकेटों के माध्यम से ही
पहचाने जाते हम लोग
चौथी श्रेणी के नागरिक होने का
दर्द भोगते रहेंगे कब तक?
- महादेव टोप्पो
कविता में उपस्थित पहचान का प्रश्न:
आदिवासी समुदायों की पहचान उनकी अस्मिता पर निर्भर है। उनकी अस्मिता ही उनकी पहचान है। जब-जब आदिवासी अस्मिता पर संकट आए हैं। तब-तब उनकी पहचान के प्रश्न निर्माण हुए है। प्राचीन काल से भारतीय समाज व्यवस्था चार वर्णों में विभक्त है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। कवि महादेव टोप्पो ने अपनी कविता में कहा है कि "हम कब तक चौथे श्रेणी के नागरिक होने का दर्द भोगते रहेंगे।" वे कब तक? कविता माध्यम से बहुत से प्रश्नों को उपस्थित करते हैं।
वे कविता का संदर्भ देकर कहते हैं कि भारत में हर पाँच वर्ष में नई पंचवार्षिक योजनाएं आती है। उस योजनाओं में आदिवासियों के लिए कई प्रकार के प्रावधान होते हैं। उन पंचवार्षिक योजना के तहत आदिवासी इलाकों में कई प्रकार की सुविधाएं देने की बात होती है। यह सब घटित होने से आदिवासियों को लगता है। अब हमारा विकास हो रहा है। हम समाज की मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं। उनको यह भी लगता है कि हम सभ्य हो रहे हैं। लेकिन यह सभ्यता की पंचवार्षिक योजनाएं केवल कागजों पर ही होती है। वास्तविक आदिवासी क्षेत्रों में इसका कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता है। आदिवासी समुदायों को यह भी लगता है कि उनकी सामाजिक एवं राजनीतिक चेतना धारदार बन गई है। और वे जल्द से जल्द मुख्य धारा में पदार्पण कर रहे हैं। उनको यह भी लग रहा हैं उनकी बुद्धि का वजन कुछ ग्राम बढ़ गया है। किंतु उनको यह पता नहीं है कि इस देश में मनुष्य की पहचान जातीय आधार पर है। और वे वर्ण व्यवस्था के अनुसार चौथे पायदान पर है। कवि कहते हैं कि हम चौथे श्रेणी के नागरिक होने का यह दंश कब तक भोगते रहेंगे। इसमें बदलाव की अपेक्षा की जरूरत है।
इस प्रकार से कवि महादेव टोप्पो 'कब तक' कविता के माध्यम से 'पहचान के प्रश्न' पर वास्तविकता बताते हैं।
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