शनिवार, 19 अक्टूबर 2024

रामदयाल मुंडा की कविता में बेदखल आदिवासियों की समस्याएँ:कब तक काम करोगे !! आदिवासी कविता-Tribal Poem !! Ramdayal munda ki kavita :kab tak kam karoge !!

 


रामदयाल मुंडा की कविता में बेदखल आदिवासियों की समस्याएँ:कब तक काम करोगे

-Dr. Dilip Girhe


'कब तक काम करोगे'

कब तक काम करोगे खून सुखाते हुए 

कब तक उद्यम करोगे पसीना बहाते हुए 

खून सुखाते हुए, पसीना बहाते हुए 

बित्ता भर पेट भरता नहीं- 

चलो, हम चलें असम देश को 

प्रिय चलो, हम निकलें भूटान धरती को


असम देश में चावल की बालियाँ होती हैं 

भूटान की धरती में पैसा फलता है 

चावल की बालियाँ, पैसों का फलना 

हल्के काम से मोरा' बनता है- 

चलो, हम चलें असम देश को 

प्रिय चलो, हम निकलें भूटान धरती को


बच्चों को अच्छी तरह पालेंगे 

संतान को ठीक से देखें-भालेंगे 

पालन करेंगे, देखभाल करेंगे 

भूख से खौलता जीव तभी शान्त होगा- 

चलो, हम चलें असम देश को 

प्रिय चलो, हम निकलें भूटान धरती को ।

                            -रामदयाल मुंडा

कवि का बेदखल आदिवासियों से प्रश्न:कब तक काम करोगे?

भूमंडलीकरण बढ़ते तेज़ी से आदिवासियों के विस्थापन की समस्या काफ़ी तेज़ी से बढ़ रही है। जिस जगहों से आदिवासियों को बेदखल किया जा रहा है। वहाँ पर फ्लॉन्ट, कारखानें, फैक्टरी, रस्ते बनते जा रहे हैं। इसी वजह से उनको वहाँ से विस्थापित किया जा रहा है। बदले में उनको मुआवजा भी ठीक ढंग से नहीं मिल रहा है। इसी वजह से आज आदिवासी दूसरों के कारखानों एवं फैक्टियों में बंधुआ मजदूर का काम कर रहे हैं। यह प्रमाण बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर के राज्यों में अधिक पाया गया है। वहाँ के आदिवासी बंधुआ मजदूर के रूप में कई राज्यों में काम के लिए जाते हैं। इस मजदूरी से उनके परिवार का सही ढंग से पेट ही नहीं भरता है। तो वे शिक्षा ग्रहण कब करेंगे? उनके परिवारों के अनेक सपनें हैं। किंतु वे सिर्फ रोटी-कपड़ा और मकान के लिए ही जूझ रहा है। ऐसे अनेक सवाल का जवाब रामदयाल मुंडा की कविता 'कब तक काम करोगे' देती है। वे इस कविता के जरिये आदिवासी का रोटी, कपड़ा और मकान पाने के संघर्ष को व्यक्त करती हैं

वे अपनी कविता से कहना चाहते हैं कि "हे आदिवासी भाइयों! आप कब तक बंधुआ मजदूर बनकर का करते रहेंगे। कब तक अपना इस काम से खून सुखाते रहेंगे। कब तक अपना पसीना बहाते रहोगे।" यह सब करने से आपका ठीक से पेट भी तो नहीं भरता है। आपको भटकना पड़ता है पेट की भूख  बुझाने। आपको अपनी जमीनों से बेदखल करके काम करने के लिए दूसरों की मिलों एवं कारखानों में जाना पड़ता है। आपको जाना पड़ता है मजबूरन असम और भूटान के शहरों में काम करने के लिए। असम में आप चावल की खेती के लिए काम करते हैं। भूटान में आप पैसा कमाने के लिए जाते हैं। आप हमेशा अपने बच्चों की परवरिश के लिए चिंतित रहते हैं। आप बच्चों की देखभाल और परिवरिश के लिए हमेशा चिंतित रहते हैं। क्योंकि ना ही उनको रहने के लिए पक्के घर होते हैं और ना ही पढ़ाई के लिए स्कूल होते हैं। भूख की आग से आपके बच्चे हमेशा भूखे ही सो जाते हैं। इसीलिए कवि आदिवसियों को पूछते हैं कि "हे आदिवासियों! आप कब तक काम करोगे।"

इस प्रकार से कवि रामदयाल मुंडा ने बेदखल आदिवासियों की समस्याओं का चित्रण 'कब तक काम करते रहोगे' कविता में किया है।

आशा है कि आपको यह कविता और उसकी व्याख्या/आलोचना अच्छी लगी होगी। इस पोस्ट को शेयर करेंऐसे और पोस्ट देखने के लिए और ब्लॉग से जुड़ने के लिए ब्लॉग फॉलो बटन और निम्न व्हाट्सएप चैनल  को फॉलो करें। धन्यवाद!   

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