मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

आदित्य कुमार मांडी ने अपनी कविता में उपस्थित किया अस्तित्व का प्रश्न (Aaditya Kumar mandi ne apni kavita mein upasthit kiya astitv ka prashn-Tribal poem)


आदित्य कुमार मांडी ने अपनी कविता में उपस्थित किया अस्तित्व का प्रश्न

Dr. Dilip Girhe


पहचान

पहचान कहाँ से होती है 
आज यही सोचना है।
अगर देश के अन्दर हैं 
तो पहला सवाल आता है
कहाँ से हो ? कहाँ के हो ?
तो आप अपने राज्य का 
नाम और पता बताते हो 
अगर परदेश में हो तो 
आप अपने देश का नाम बताते हो।
मगर जन समाज में 
किसी की पहचान पूछो तो 
क्या जवाब होगा 
आप कहां के हो?
आपकी पहचान क्या है
आप क्या करते हो वगैरह वगैरह का?
जवाब आपको देना है 
जन्मभूमि कर्मभूमि और खुद का भी। 
तो आप क्या हो
यह सवाल करो स्वयं से 
और फिर जवाब दो
बेहिचक बताओ उस मिट्टी के बारे में 
जिससे गढ़े गये हो तुम
जिस दिन साफ कर दी तुमने यह मिट्टी 
सोचना, क्या पहचान रह जायेगी तुम्हारी ?
     -आदित्य कुमार मांडी 

कविता की संवेदना:

आदिवासियों का हज़ारों सालों से जल, जंगल और ज़मीन से रिश्ता रहा है। उनके रहने का स्थान ही वहीं है। पर्यावरण के हर जीव-जंतु, पशु-पक्षी, प्राणी, पेड़-पौधे उनके मित्र हैं। साहित्य अकादमी पुरस्कृत संताली लेखक आदित्य कुमार मांडी ‘पहचान’ कविता उदाहरण के रूप में देख सकते हैं, जिसमें कवि दर्शाते हैं कि आदिवासी की पहचान उनकी जन्मभूमि और कर्मभूमि से ही होती है। संविधान के जरिये आदिवासी पहचान की तलाश लेख में लिखा गया है कि आदिवासी समाज के जीवन का मूल आधार जमीन और अन्य प्राकृतिक संसाधन रहे हैं।” जब आपकी पहचान पर सवाल किया जाता है तो आप बेहिचक जवाब दें कि आप किस मिट्टी से हैं, किस क्षेत्र से हैं और किस भूमि से हैं ताकि आपकी पहचान बनी रहे। 

आदित्य कुमार मांडी पहचान काव्य में लिखते हैं कि किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके अस्तित्व की पूँजी होती है। किसी मनुष्य का नाम, गाँव या पता पूछा जाता तो उसकी पहचान अपने आप हो जाती है। पहचान यह मनुष्य की जन्मभूमि और कर्मभूमि पर भी निर्भर होती है। तो आपकी पहचान क्या है? यदि यह सवाल किया जाता तो हमारे सामने अपने आप कर्मभूमि का नाम आता है। यानी कि कर्मभूमि मनुष्य के मिट्टी से जुड़ी रहती है। उस मिट्टी में उनका अस्तित्व गढ़ा हुआ होता है। जिस दिन उस मिट्टी को साफ किया जाता है। तो उस मिट्टी के साथ-साथ उस व्यकि का भी अस्तित्व समाप्त हो जाता है। साथ ही पहचान भी नष्ट हो जाती है। 

इस प्रकार से आदित्य कुमार मांडी ने अपनी कविता पहचान में मनुष्य की पहचान का प्रश्न उपस्थित किया है।


संदर्भ:

आदित्य कुमार मांडी-जंगल महल की पुकार

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