गुरुवार, 5 दिसंबर 2024

आदित्य कुमार मांडी ने 'जमीन' कविता में उपस्थित किया औद्योगिकीकरण और कटते जंगल का प्रश्न (पहाड़ पर हूल फूल काव्य संग्रह-आदिवासी कविता-aadiwasi kavita)

आदित्य कुमार मांडी  ने 'जमीन' कविता में उपस्थित किया औद्योगिकीकरण और कटते जंगल का प्रश्न 

Dr. Dilip Girhe

जमीन

जमीन को बचाये रखने के लिए 

तमाम लोगों को 

एकजूट होकर लड़ाई लड़नी होगी।

जरा सोचें उन शहीदों के बारे में 

जिन्होंने 

हमें पहचान दिया 

राह दिखायी 

हमें साहस दिया 

तमाम परिस्थितियों से 

क्या सोच रहे हो?

मुकाबला करने की। 

उन शहीदों के 

बलिदान से ही आज भी 

झारखण्ड हरा भरा है।

यहाँ के पेड़ पौधे 

पहाड़ पर्वत जंगल जमीन 

नदी झरना परिंदे 

फूल फल लताएं 

हमसे बातें करते हैं 

पूछते हैं

खामोश क्यों हो?

झारखण्ड आज तुम्हारा हो गया है 

फिर जमीन बेचने की क्या वजह है?

प्रकृति बातें कर रही हैं 

जमीन बोल रही है 

हमारा सौदा न करो 

हमसे रिश्ता न तोड़ो 

वरना पछताने के अलावा 

कुछ न रह जायेगा। 

सदियों से जो रिश्ता है 

उसकी अहमियत को समझो 

वरना टूट कर बिखर जाओगे।

औद्योगिक विकास के नाम पर 

लूटेरें लूट रहे हैं तुम्हें 

और कब तक बरदाश्त करोगे?

             -आदित्य कुमार मांडी (पहाड़ पर हूल फूल)

काव्य की संवेदनशीलता:

झारखंड आदिवासी बहुल प्रदेश में जंगलों में अपार प्राकृतिक संपदा मौजूद है। किंतु औद्योगिक विकास के नाम पर यह प्राकृतिक संसाधन आज भरपूर मात्र नष्ट होते जा रहे हैं। इसी प्राकृतिक संपदा को ज़मीनदारों, साहूकारों और अंग्रेजों से बचाने के लिए बिरसा मुंडा ने इसी धरती पर उलगुलान नामक आंदोलन छेड़ा था। परंतु आज विकास ने जंगल की संपदा को नष्ट करना शुरू किया है। यह विकास मनुष्य का जीवन भी नष्ट कर रहा है। आज हम देख रहे हैं कि जंगल कम होने से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया है। जिसके कारण ऋतुमान में बदल दिखाई दे रहा है। मनुष्य बीमारियों के कटघरे में खड़ा दिख रहा है। ऐसे अनेक प्रश्न कवि आदित्य कुमार मांडी ने 'जमीन' कविता में व्यक्त किये हैं। 

वे जमीन कविता के माध्यम से कहना चाहते हैं कि जो आज हमें जल, जंगल और पहाड़ दिखाई दे रहे हैं। उसे बचाने के लिए हमारे पूर्वजों ने अनेक लड़ाईया लड़ी और वे उसमें शहीद हो गए। उसमें से बिरसा मुंडा एक ज्वलंत उदाहरण है। उन शहीदों के बलिदान को हमें खाली नहीं दिया जाना है। जिनके कारण हमें एक नई पहचान मिली है। एक ऊर्जा मिली। उनके उलगुलान ने हमें साहस दिया है। और अन्याय -अत्याचार के खिलाफ लड़ने के लिए बल दिया है। उनके आंदोलन से ही झारखंड ही नहीं बल्कि भारत के अनेक प्रदेशों में जंगल बचाव आंदोलन खड़े हुए हैं। आज प्राकृतिक घटक जैसे पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, पहाड़ हमसे बात करने लगे है। हमें उनकी अहमियत को समझना होगा और प्रकृति को संरक्षित करना होगा। तभी आने वाली पीढियां अपना आरोग्य बचा सकती है।

इस प्रकार से आदित्य कुमार मांडी ने अपनी जमीन कविता में औद्योगिक विकास और कटते जंगल का प्रश्न उपस्थित किया है।


संदर्भ

आदित्य कुमार मांडी-पहाड़ पर हूल फूल


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