बीएल भूरा भाबरा ने अपने काव्य में कुदरत के हाथों से बनीं हर चीज़ को जोहार कहकर किया अभिवादन
-Dr. Dilip Girhe
कुदरत के हाथों से बनीं
हर चीज़ को जोहार
अंधेरों को जोहार
उजालों को जोहार
ज़ै और ज़व़र को जोहार
प्रेम और प्रित को जोहार
उठती हुई समन्दर की
मौजों को जोहार
हर लेहेर को जोहार
कुदरत के हाथों से बनीं
हर चीज़ को जोहार
फूलों को पत्तों को
बेल और वूंटों को
कली को फूल को
तितली को भंवरों को जोहार
कुदरत के हाथों से बनीं
हर चीज़ को जोहार
गुल को जोहार
गुलशन को जोहार
आसमानों से टप-टप
टपकती बारिश की
बूंदों को जोहार
खिलती धूप को जोहार
लहरा कर चलतीं
हवाओं को जोहार
सुरमाई शाम को जोहार
चिराग़ों को जोहार
आसमान में चमकते
चांद सितारों को
तारों को चांदनी को जोहार
कुदरत के हाथों से बनीं
हर चीज़ को जोहार
ज़ै और ज़व़र को जोहार
प्रेम और प्रित को जोहार
- बीएल भूरा भाबरा जिला अलीराजपुर मध्यप्रदेश
काव्य संवेदना:
कुदरत के इर्दगिर्द बनी हर चीज वाकई प्राकृतिक सौंदर्य से भरी हुई है। उस प्रत्येक वस्तु में अपनी विशेषता छाई हुई है। ऐसे अनेक प्राकृतिक संपदा से ही पृथ्वी का सौंदर्य फुला हुआ मिलता है। इसीलिए यहां पर मौजूद प्रत्येक वस्तु या संपदा को कवि प्राकृतिक देवता कहकर उसे अभिवादन या नमन करते हैं। उस अभिवादन या नमन को आदिवासी संस्कृति में जोहार कहा जाता है। यह प्रकृति में समाहित कोई भी बड़ी वस्तु को अभिवादन करने की परंपरा है। ऐसी परंपरा का चित्रण कवि भूरा भाबरा अपनी कविता 'कुदरत के हाथों से बनी हर चीज को जोहार' में करते हैं। वे कुदरत से बनी प्रत्येक वस्तु को आदर देते हैं। उन्हें देवता की उपमा देते हैं और अभिवादन करते हैं।
वे कहते हैं कि कुदरत से बनी हर एक चीज को मैं नमन करता हूँ उन्हें जोहार कहता हूँ। क्योंकि वह वस्तु हमारे देवता समान है। वह मनुष्य की रक्षा करती है। वे अंधेरे और रोशनी को भी जोहार कहते हैं। अंधेरा और रोशनी दोनों प्रकृति में शामिल जीव-जंतुओं को आवश्यक है। दोनों की महत्ता अधिक है। फूल, पत्त्ते, कलि, तितली, भंवर इन जैसे प्राकृतिक जीवों के कारण ही प्रकृति का सानिध्य टिका हुआ है। उसके कारण उसका सौंदर्य और भी अच्छा दिखता है। गुल, गुलशन, आसमां, तारे, चन्द्रमा और सूरज जैसे अनेक प्राकृतिक घटकों को भी जोहार जिसके कारण उजाला और अंधेरा मिलता है।
इस प्रकार से कवि प्रकृति के प्रत्येक घटक को अभिवादन किया है।
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