चंद्रमोहन किस्कू की कविता में अपने गाँव की यादें
-Dr. Dilip Girhe
अपने गाँव की याद
मशीन की घर्र-घर्र आवाज़
गाड़ी-मोटरों की कर्कश आवाज़
चारों ओर शोर ही शोर
चारों ओर कारखानों की चिमनी
चिमनी से निकल रहे
काले धुँए से
नगर ढँक गया है।
पर...
ऐसे नगर में रहते हुए
एक ऐसी जगह ने
मेरे मन को चुरा लिया
मेरे मन को मोहित किया
जिसकी यादें उमड़ती हैं मन में
पहाड़-जंगलों से घिरा
पेड़-लताओं से सजा
वह मेरा गाँव है
हाँ, हाँ फूलों की वह
बागवान
मीठे कुंए का पानी
धूल उड़ाती पगडण्डी
घनी पेड़ की छाँव
याद आ रही है।
-चन्द्रमोहन किस्कू-महुआ चुनती आदिवासी लड़की
काव्य संवेदनशीलता:
आज आधुनिकता की दौर में हर किसी को अपने गाँव की यादें आती है। क्योंकि आधुनिकता के कारण इंसान आज मजबूरन रोजगार खोजने के लिए शहर की ओर जा रहा है। बड़ी-बड़ी कंपनियों ने शहर में अपना साया फैलाया है। इसी वजह से लोग काम की खोज के लिए शहर में जाकर बसने लगे हैं। इसी दौर में जब किसी व्यक्ति को अपने गाँव की याद आती है तो वह कैसे भूल सकता है। ऐसी ही यादों को संताली भाषी कवि चन्द्रमोहन किस्कू 'अपने गाँव की याद' काव्य में व्यक्त किया है।
वे कहते हैं कि आधुनिक युग में आज चारों ओर मसीनों की आवाज गूंज रही है। इसी को साथ देने के लिए मोटर गाड़िया भी कर्कश आवाज कर रही है। शहर के कारखानों की चिमनी के धुओं से जो धुआं निकल रहा है। उससे चारों ओर काला-काला दिखाई दे रहा है। नगर का चेहरा भी अब इस धुएं के कारण नहीं दिखाई दे रहा है। ऐसे प्रदूषित नगर में रहने हर एक इंसान को अपने गाँव की याद तो आनी ही है। ऐसा गाँव जहां पर खेत-खलिहान, हरियाली, नदी-नाले, पर्वत हो। जिस गाँव में हरे-भरे फूलों से भरा बागबान है और ऐसा कुआँ जिस कुएँ का पानी मीठा है और पगडंडियों से जाते समय धूल की नमी स्वाद आज भी सबको याद आती है।
इस प्रकार से कवि ने अपने गाँव की अनेक यादों को अपने काव्य में व्यतीत किया है।
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