शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024

चंद्रमोहन किस्कू की कविता में वट वृक्ष की जुबान (chandramohan kisku ki kavita mein vat vriksh ki juban-Aadiwasi kavita)


चंद्रमोहन किस्कू की कविता में वट वृक्ष की जुबान

-Dr. Dilip Girhe


वट वृक्ष का इतिहास

एक इतिहास 

जो इतिहास के पन्नों 

पर न लिखा गया है 

और न लिखा न जाएगा,


दैनिक अखबारों में भी 

उसे जगह नहीं मिली 

टेलीविज़न पर भी 

दिखाया नहीं गया 

और रेडियो पर तो 

वह आया ही नहीं।


गाँव के बाहर 

चौराहे का

ठण्डी छाँव देनेवाला 

बूढ़ा वट वृक्ष पूरवा के 

तूफान से 

गिर गया 

वहाँ रह रहे पक्षी

बेघर हो गये। 

यह ख़बर लोगों को मालूम हुई 

इस ख़बर का कोई 

मूल्य नहीं था 

इसके साथ कोई स्कैंडल 

जुड़ा नहीं था 

इसकी छाँव में 

किसी बुद्ध ने विश्राम नहीं किया था 

इसके चारों ओर 

घिरा चबूतरा नहीं था 

फिर भी 

इसका एक इतिहास था।


जब सूर्य देवता 

भरी दोपहरी में 

गुस्से से जलते थे 

तब यहाँ ठण्डी छाँव रहती थी 

जब आसमान से 

मूसलधार वर्षा होती थी 

तब लोग यहाँ 

छतरी का सुख पाते थे।


इतिहास के पन्नों पर 

इसका ज़िक्र न होने के बावजूद 

अख़बारों में 

जगह न मिलने पर भी 

इस वट वृक्ष की कथाएँ 

लोगों के मन में 

लंबे समय तक बनी रहेंगी।

-चंद्रमोहन किस्कू (महुआ चुनती आदिवासी लड़की)


काव्य संवेदना-

प्रकृति में समाहित प्रत्येक वृक्षों, पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं का अपना अस्तित्व है। उनके अस्तित्व के कारण ही उनकी उपयोगिता जानी जाती है। इसी वृक्षों में से दीर्घ आयु जीने वाला वट वृक्ष पेड़ है। यह बारिश और धूप दोनों ऋतुओं में काम आता है। इसीलिए हमें उसका इतिहास भी पता होना चाहिए। चंद्रमोहन किस्कू ने अपनी कविता 'वट वृक्ष का इतिहास' में उसके अस्तित्व की कहानी बताई है। वे कहते हैं कि इतिहास में एक इतिहास ऐसा भी रहा है कि जिसका कोई नामों निशान नहीं लिखा गया है। और न लिखा जाने की संभावना है। वह इतिहास है वट वक्ष का। हम रोज रेडियो, टेलीविजन और अखबारों की खबरें देखते और पढ़ते आ रहे हैं। परंतु वट वृक्ष के इतिहास या उसके अस्तित्व के बारे कभी भी न दिखया जाता है न छपा जाता है। 

इस वट वृक्ष के अस्तिव या इतिहास की बात करें तो हम देखते हैं कि हर एक गाँव के चौराहे पर साधारण रूप जो वृक्ष दिखाई देता है वह वट वृक्ष ही होता है। जो कि गर्मी के दिनों में ठंडी छाँव देता है और बारिश के दिनों में बारिश से बचने के लिए सहारा देता है। किंतु वह वट वृक्ष जब पुरवा के तूफान से गिर जाता है तो उस जीवन जी रहे पशु-पक्षी मर जाते हैं या वे बेघर हो जाते हैं। यह खबर लोगों को पता होने के बाद भी वे बेघरों की या वट वृक्ष की कहानी नहीं सुनता। और न ही कोई शोक या दुख व्यक्त करता है। वे लोग यही सोचते होंगे कि छोड़ दीजिए किसी बुद्ध ने इस वट वृक्ष के नीचे न ही आश्रय या विश्राम किया है। यह सब जानते हुए फिर भी इसका इतिहास रहा है। इसे जानना हम सबका कर्तव्य है।

इस प्रकार से कवि चंद्रमोहन किस्कू अपनी कविता में वट वृक्ष के अस्तित्व की कहानी बताते हैं।


संदर्भ

चंद्रमोहन किस्कू-महुआ चुनती आदिवासी लड़की

इसे भी पढ़िए...


कोई टिप्पणी नहीं: