रविवार, 15 दिसंबर 2024

ग्रेस कुजूर ने अपनी कविता में लिपिबद्ध किया गाँव की मिट्टी का महत्व (Gres kujur ne apni kavita mein lipibaddh kiya gaanv ki mitti ka mahattv-Tribal kavita-Aadiwasi Kavita-kalam ko teer hone do)


ग्रेस कुजूर ने अपनी कविता में लिपिबद्ध किया गाँव की मिट्टी का महत्व

Dr. Dilip Girhe


गाँव की मिट्टी

पगडंडियों से होकर चलते वक्त 

पाँवों से लिपटी

गाँव की मिट्टी ने कहा था- 

रहने देना चरणों में यह धूल 

शहर की कोलतार भरी सड़कों पर 

चलते वक्त

यह बचाएगी तुम्हें- 

कालिख चिपकने से। 

       - ग्रेस कुजूर-कलम को तीर होने दो


काव्य संवेदना:

आधुनिकता का की दुनिया में मनुष्य ने कितना भी विकास क्यों न किया हो परंतु उसे अपनी गाँव की सभ्यता को नहीं भूलना चाहिए। गाँव की यह ऐसी सभ्यता है जिसे भूलने से मनुष्य अपना आयुमान भी कम करता है। आज भी गाँव की सभ्यता की कई विशेषता है जिसके कारण मनुष्य का विकास संभव नहीं है। आज मनुष्य भले ही आधुनिकता के नारे दे रहा है। किंतु उसे अंतिम दिनों में ग्राम सभ्यता ही याद आएगी। इसके बारे महात्मा गांधी ने भी लिखा था कि 'देहात की ओर चलों'। यानी कि मनुष्य को नगर और ग्राम जीवन में सबसे ज्यादा आयुमान देने वाला जीवन ग्राम ही है। यही वजह रही है कि अनेक साहित्यकारों ने साहित्यिक दुनिया में नगर सभ्यता की तुलना में ग्राम सभ्यता की अधिक प्रस्तुत किया है। भले ही इसे स्पष्ट करने के लिए नगरी सभ्यता का सहारा लिया है।ऐसा ही चित्र ग्रेस कुजूर ने 'गाँव की मिट्टी' कविता में किया है। वे शहर में जाने के बाद अपनी गाँव की मिट्टी की यादें किस प्रकार से अपने साथ जुड़ी होती है इसको लिखती है। 

वे कविता का संदर्भ देकर कहना चाहती है कि गाँव की मिट्टी का अपना खास महत्त है। हम भले ही शहर में जाकर बसे किंतु इस मिट्टी की यादों को हम नहीं भूल सकते हैं। शहर जाते समय हमारे पैसे को कोई भी मिट्टी कण नहीं लगता है।क्योंकि सड़कें इतनी पक्की बन गई है कि मिट्टी का कण अब दिखना मुश्किल हो गया है। वहाँ पर मिट्टी को खोजना पड़ता है। परंतु गाँव की मिट्टी गाँव जाने के बाद पल-पल साथ जुड़ी रहती है। चाहे घर में रहे या खेत-खलिहान में रहें। पगडंडियों से चलते वक्त तो यह मिट्टी पाँवों को लिपटी रहती है। जैसे माँ-बेटे का रिश्ता हो वैसे ही या चिपकी रहती है। ऐसे अनेक यादे गाँव की मिट्टी के साथ जुड़ी रहती है। 

इन यादों को कवि ग्रेस कुजूर ने अपनी कविता में लिपिबद्ध किया है।

संदर्भ:

ग्रेस कुजूर-कलम को तीर होने दो


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