सोमवार, 9 दिसंबर 2024

रोज केरकेट्टा ने अपने काव्य में लोकतांत्रिक पेड़ बरगद की बताई विशेषताएँ (Roj kerketta ne apane kavita mein loktantrik ped bargad ki batai visheshtayen-tribal poem-kalam ko teer hone do)


रोज केरकेट्टा ने अपने काव्य में लोकतांत्रिक पेड़ बरगद की बताई विशेषताएँ

-Dr. Dilip Girhe 


बरगद

गाँव के बीच में

जोड़ा भर बरगद 

हों जैसे भाई-बहन 

नीचे बच्चे करते कलरव 

ऊपर पंछी 

राँव-झाँव, राँव-झाँव


मैना-कौवा, चील-बगुला 

सबके घोंसले बेतरतीब 

उल्लू-पेचा, गिलहरी 

खोंढ़रों में आबाद 

पहचान लेते घर 

अपना-अपना


लोकतान्त्रिक पेड़ पर 

न कोई भूखा 

न कोई प्यासा 

ना कोई अमीर 

ना... कोई गरीब 

सब आज़ाद, सब आज़ाद


यदि हम भी रह लेते 

देश, घर-गाँव में अपने 

शान्ति से 

इज्ज़त से 

अमीर और गरीब भी नहीं बनते नासूर 

जन-जन के।

         -रोज केरकेट्टा (कलम को तीर होने)

काव्य की संवेदना

संसार के अनेक कोने में पाए जाने वाला बरगद के पड़े से आप सभी परिचय है। इस पेड़ की विशेषता यह है कि इसको बहुवर्षीय या दीर्घ आय जीवन जीने वाला पेड़ भी कहा जाता है। यह पेड़ प्रयेक गाँव के आस पास कहीं न कहीं दिखाई देता है। प्राकृतिक सौंदय को एक अलग पहचान देने वाला यह पेड़ है। पेड़ जैसे प्राकृतिक प्रतीक आदिवासी कविता में अनेक जगह पाए गए हैं। क्योंकि वृक्षों के कारण ही सजीव सृष्टि अबाधित रहती है। झारखंड की आदिवासी कवयित्री रोज केरकेट्टा ने प्रकृति के प्रतीकों पर अपनी कलम चलाई है। इसका एक उदाहरण 'बरगद' कविता को देखा जाता है। बरगद जैसे बहुवर्षीय प्राकृतिक वनस्पति पर उन्होंने उसका लोकतांत्रिक महत्व को विशद किया है। 

वे बरगद की विशेषता बताती हुई कहती है कि यह कई गांवों में बीचों बीच दिखाई देता है। गाँव के बुजुर्ग भी इस पेड़ की छांव का आनंद उठाते हैं। साथ हीअनेक भाई-बहन , छोटे बच्चे इस पेड़ की नीछे दिन भर खेलते रहते है। वे जिस प्रकार से सुखद अनुभव उठाते हैं। यह आनंद की भी बाजार या पैसों से मिलने वाला नहीं होता है। और इस पेड़ के ऊपर जो पंछियों की राँव छांव आवाज कानों को कितना मंत्रमुग्ध कर देती है। मैना, कौआ, बगुला, उल्लू, पेचा, गिलहरी जैसे पशु-पक्षिओं ने तो अपना घर ही इस बरगद के पेड़ पर बनाया है। इस लोकतांत्रिक पेड़ पर न कोई भूखा है न कोई प्यासा है। सब आनंद से उल्हासित होकर अपना जीवन जी रहे हैं। और वह भी गुलामी से आजाद होकर। कवयित्री का कहना है कि इस लोकतांत्रिक पेड़ में जो गतिविधियां हो रही है। वैसी  गतिविधियां यदि हमारे जीवन में होती तो कितना अच्छा होता। क्योंकि यहाँ पर सब खुशहाली दिखाई दे रही है और मनुष्य का जीवन देखें कितना बोझिल है। वह न शांति से जीता है न इज्जत से जीता है। बस वह अमीर और गरीबी की खाई में डूबा रहता है।

इस प्रकार से कवयित्री रोज केरकेट्टा ने बरगद पेड़ की विशेषताओं को अपने लेखन में जहग दी है।


संदर्भ

गुप्ता रमणिका-कलम को तीर होने दो

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