शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

शिशिर टुडू की कविता में उलगुलान की पुनरावृत्ति (shishir tudu ki kavita mein ulgulan ki punaravritti -tribal kavita -kalm ko teer hone do)


शिशिर टुडू की कविता में उलगुलान की पुनरावृत्ति

Dr. Dilip Girhe


फिर होगा उलगुलान

मेरे शहर में 

विगत कुछ वर्षों में कमाल हो गया है 

एअरपोर्ट, बन्दीगृह से लेकर 

होटल, जूते की दुकान तक से 

शहीद बिरसा मुंडा का नाम जुड़ना 

मेरे लिए एक बड़ा सवाल हो गया है


यह सही है कि 

जिन्होंने दुकानों, होटलों के रखे नाम 

उन्होंने शहीद का नाम ही सुना होगा 

न उन्होंने पढ़ा होगा उनका इतिहास, न उन्हें जाना होगा 

'बिरसा ने मारा बाघ' 

कभी बचपन में पढ़ा होगा 

किंतु इस कथा के मर्म से 

वह अनजाना होगा 

'बिरसा' कौन था और कौन था 'बाघ' 

इसे न वह समझा होगा-न जाना होगा


मूल भाव कथा का 

है निहित इसी में 

'शोषित' व 'शोषक' को 

पहचानना होगा 

बिरसा थे जननायक, नहीं थे लकड़हारा 

थे 'रोगहर' सबके

शोषितों के सहारे

स्वराज था मूलमन्त्र उनका 

करते हम सब हृदय से उनको 

नमन


'उलगुलान' की कथा 

जब-जब सुनाई जायेगी 

उनके बलिदान की बहुत याद आयेगी 

बिरसा सामान्य नहीं

युग-पुरुष थे

अपनी हस्ती मिटा कर जिन ने 

फूँके थे प्राण

ऐसे युग-पुरुष को तुम्हें देना होगा 

सम्मान

नहीं तो सच कहता हूँ झूठ नहीं 

एकबार फिर होगा उलगुलान !

     -शिशिर टुडू -कलम को तीर होने दो


काव्य संवेदना:

वर्तमान में आदिवासियों को जब अपने हक अधिकारों के लिए लड़ना होता है तो वह बिरसा के उलगुलान को याद करते हैं। इसी कारण शिशिर टुडू अपनी कविता 'फिर होगा उलगुलान' में लिखते हैं कि बिरसा मुंडा ने अन्याय-अत्याचार के खिलाफ उलगुलान पुकारा था। विगत कुछ वर्षोँ से हम देख रहे हैं कि यह उलगुलान गाँव देहातों से लेकर शहर के कोने-कोने में पहुंच गया है। इस उलगुलान के साथ शहीद बिरसा मुंडा नाम जुड़ा हुआ है। यह एक बहुत ही गर्व का विषय है। यह उलगुलान अब दुकानों, होटलों पर पहुँच चुका है। लोग उलगुलान का अर्थ जान चुके हैं। जिन लोगों को बिरसा की शहीद होने की कहानी पता नहीं वे उनका इतिहास सब धीरे-धीरे जान रहे हैं। समझ रहे हैं। बिरसा ने बचपन में बाघ मारा था। इसकी भी वह कहानी सुन चुके हैं।

शोषित और शोषक वर्ग की कहानी भी जान चुके हैं। बिरसा शोषितों के जननायक थे। जब जब शोषण होता था तब बिरसा के उलगुलान को याद किया जाता था। बिरसा अपने समय के युगपुरुष थे। जिन्होंने अपना बलिदान देकर अन्याय-अत्याचार के खिलाफ जंग लड़ी थी। ऐसे युगपुरुष को हमेशा याद किया जाएगा उनको नमन किया जाएगा। क्योंकि उनके उलगुलान की आज समाज को जरूरत है। 

इस प्रकार से शिशिर टुडू ने अपनी कविता में फिर होगा एक बार उलगुलान का नारा दिया है।


संदर्भ

गुप्ता रमणिका-कलम को तीर होने दो

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