बुधवार, 11 दिसंबर 2024

शिवलाल किस्कू की कविता में आदिवासी बच्चों के भूख का प्रश्न (shivalal kisku ki kavita mein aadiwasi bacchon ke bhukh ka prashn -tribal poem-kalam ko teer hone do)


शिवलाल किस्कू की कविता में आदिवासी बच्चों के भूख का प्रश्न

Dr. Dilip Girhe


आश्वासन

आज उसके यहाँ 

चूल्हा जला नहीं 

खाना पका नहीं 

कारण

न चावल था न दाल 

न आटा था न 'बाल' 

न चना न जौ 

न बाजरा न ज्वार 

न 'कोदो" न मड़आ 

कुछ भी नहीं था 

आखिर 

पकता तो क्या पकता ? 

वह 

हारकर बैठ गया था 

इसलिए कि 

न कहीं कोई काम है 

न पहले का दाम है 

न पैंचा न उधार है 

उसे, कुछ भी नहीं मिला था।

इसलिए

यह कहकर बच्चों को भूखे ही सुला दिया

कि

कल सुबह

निश्चित ही कोई जुगाड़ होगा

चूल्हा जलेगा

मकई का घाठाँ' ही सही

खाना जरूर पकेगा !

      -शिवलाल किस्कू -कलम को तीर होने दो


काव्य की संवेदना:

भारत के कई हिस्सों में आज भी आदिवासी समाज रोटी ,कपड़ा और मकान इन मूलभूत बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे आदिवासी बहुल प्रदेशों की बात करें तो इन राज्यों में आदिवासी समाज इन बुनियादी सुविधाओं से दूर मिलता है। प्रमुखता महाराष्ट्र में अमरावती जिले के मेलघाट क्षेत्र में आदिवासी बच्चों की भुखमरी से मरने वाली स संख्या अधिक है। आज आदिवासी कवि रोटी, कपड़ा एवं मकान जैसे बुनियादी समस्याओं पर लिख रहे हैं। सरकार इन सुविधाओं को पूरा करने का आश्वासन दे रही है। लेकिन यह आश्वासन केवल कागजों पर ही सीमित रह रहे हैं। इन जैसे आश्वासन पर कवि शिवलाल किस्कू अपनी 'आश्वासन' कविता में लिखा है। 

वे आश्वासन कविता में लिखते हैं कि आज आदिवासी बहुल ऐसे कई क्षेत्र जिनके घर में चूल्हा नहीं जलता है ना ही खाना पकता है। क्योंकि उनके घर में न चावल होता है न ज्वार, न गेवहु न चना, न दाल न बाजरा कोई भी न होने के कारण उनके घर का चूल्हा जलता ही नहीं। इस वजह से वह परेशान रहता है कि अपने बच्चों को एक समय का खाना कहाँ से लाए उन्हें क्या खिलाये। वह यह सोच-सोचकर हार गया है। न ही उसको कोई काम मिलता है न ही किसी काम का सही दाम मिलता है और कोई दुकानदार उनको उधार भी नहीं देता है। ऐसे स्थिति में उनके बच्चे भूखे सो जाते हैं। और कल की राह देखते हैं कि कल निश्चित रूप में कोई न कोई खाने का जुगाड़ हो जाएगा। कल खाना मिल जाएगा। इसी उमीद से बच्चे भूखे सो जाते हैं।

इस प्रकार से कवि शिवलाल किस्कू ने आदिवासी समाज के भुखमरी की समस्या को रेखांकित किया है।


संदर्भ

शिवलाल किस्कू -कलम को तीर होने दो

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