शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

महादेव टोप्पो के काव्य में झारखंड भ्रमण का चित्रण (Aadiwasi Kavita-kalam ko teer hone do)

महादेव टोप्पो के काव्य में झारखंड भ्रमण का चित्रण

-Dr. Dilip Girhe


कविता को झारखंड घुमाना चाहता हूँ

तुम्हारी कविता 

टहलती है गंगा या यमुना किनारे 

करती है सैर 

मगध, इलाहाबाद, दिल्ली, बनारस, भोपाल, जयपुर 

भोजपुर, अवध, ब्रज, मालवा की आती 

नहीं कभी कंटीली झाड़ियों से भरे 

झारखंड के पहाड़ों पर


गलती से अगर आती भी है तो 

तेज़ रफ्तार से चलती कार पर 

होकर सवार धूल से आँख बचाती 

पहने रंगीन चश्मा 

देखकर हमें 

लौट जाती है राजधानी


इस कविता को मैं 

चाहता हूँ झारखंड के गाँवों तक टहलाना 

टूटे-फूटे शब्दों में 

लिखता हूँ, कविता- 

शहरों में दिकू बने घरों से दूर 

आदिवासी कुनबे की कराना चाहता हूँ सैर

इसीलिए

टूटे-फूटे शब्दों में लिखता हूँ कविता

एक शोधकर्ता

एक पत्रकार

एक पेंटर

एक फोटोग्राफर

एक कलाकार और

एक प्रतिभाखोजी कोच की तरह 

कविता को झारखंड घुमाना चाहता हू

टूटे-फूटे शब्दों में 

कविता जैसी कुछ पंक्तियाँ 

लिखने का प्रयास करता हूँ

कविता को झारखंड में घुमाना चाहता हूँ।

-महादेव टोप्पो-कलम को तीर होने दो


काव्य संवेदना:-

हर एक प्रदेश या क्षेत्र का कवि अपने क्षेत्र की कहानी को काव्य चित्रित करता है। वह कवि उसके क्षेत्र का सुख दुःख जैसी मनगढ़ंत बातें को बता सकता है। यह सभी बातें उसके वास्तविक जीवन से जुड़ी होती है। तभी वह बातें कविता में बिखर जाती है। ऐसे ही बिखरे हुए क्षेत्र का चित्रण कवि महादेव टोप्पो अपने काव्य में चित्रित करते हैं। वे अपनी संपूर्ण कविता में झारखंड के कुछ प्रमुख बातों को बताते हैं। वे गैर आदिवासी क्षेत्र व आदिवासी क्षेत्र की तुलना करते हैं। आधुनिक कविता तो बड़े-बड़े महानगरों का संदर्भ देती है। किंतु आदिवासी कविता उस परिवेश के संपूर्ण सांस्कृतिक परिवेश को दर्शाती है। आधुनिक कविता ने भूमंडलीकरण के विविधता को बताना चाहा है। वह कविता चलती तेज कार का भी वर्णन करती है। वह रंगीन चश्में का भी उदाहरण देती है और राजधानी के अनेक दृश्यों को भी दिखाती है। 

कवि आधुनिक कविता की तुलना में अपनी कविता को झारखंड के गांवों-गांवों तक जाकर उसका सैर कराना चाहते हैं। ताकि ग्रामीण आँचलिकता की विविधता प्रकट हो सकें। वे भले ही अपनी कविता को टूटे-फूटे शब्दों में रचते हैं। किंतु ग्रामीण संस्कृति की जीवंतता को रेखांकित करते हैं। वे हर एक आदिवासी कुनबे का चित्रण अपने टूटे-फूटे शब्दों व्यक्त करते हैं। ताकि जिस तरह से शोधकर्ता, पत्रकार, पेंटर, फोटोग्राफर और कलाकार अपनी काबिलियत दिखाते हैं। उसी प्रकार से कवि भी अपनी कविता के ऐसी बाते को दिखाने चाहते हैं।

इस प्रकार से कवि महादेव टोप्पो अपनी कविता में झारखंडी अस्मिता के विविध चित्र रेखांकित करते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: