महादेव टोप्पो की कविता में आदिवासी गाँव में इंटर पास छात्र का सपना
-Dr. Dilip Girhe
आदिवासी गाँव में इंटर पास छात्र का सपना
आखिर मिशन स्कूल से
सैकेन्ड डिवीजन मैट्रिक पास हूँ
पढ़ रहा हूँ इंटर
पा लूँगा कहीं न कहीं नौकरी कोई छोटी-मोटी
कर लेने दो बी.ए. पास दादा !
तुम इसलिए परेशान क्यों होते हो दादा?
कि कॉलेज में एडमिशन के लिए माँगूँगा मैं फीस ?
चिन्ता न करो दादा इस बार बारिश अच्छी हुई है
धान कुछ अधिक उपजेगा
फिर हम खेतों में मटर, आलू या गोभी की भी कर लेंगे खेती
पैसे मिल ही जायेंगे
जुगाड़ हो जायेगा किसी न किसी तरह मेरी पढ़ाई का
न मैं स्वेटर माँगूँगा न जैकेट, न जीन्स, न पैंट
न साइकिल, न रेडियो, न टी.वी. दादा
कर लेने दो पास बी.ए. दादा
मुझे पढ़ाने के चक्कर में
बहुत हो चुके हो तुम अपमानित
बसों में, सड़कों में, चौराहों में,
बाजारों में गाँव से राँची शहर और राँची से कोड़ा' जाने तक
अब आप कोड़ा नहीं जायेंगे दादा
कर लेने दो मुझे बी.ए. पास दादा।
-महादेव टोप्पो-कलम को तीर होने दो
काव्य संवेदना-
आदिवासी बहुल प्रदेशों में आज भी आदिवासी बच्चे शिक्षा से वंचित है। इसका मुख्य कारण यह पाया गया कि वह परिवार आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है। इसका ताज़ा उदाहरण हम महाराष्ट्र के अमरावती जिले के मेलघाट, छत्तीसगढ़ का बस्तर, झारखंड के पिछड़ा इलाका जैसे अनेक क्षेत्रों देख सकते हैं। कवि महादेव टोप्पो भी अपने क्षेत्र का संदर्भ बताकर समग्र आदिवासी समाज शिक्षा से दूर कैसे रहा है और जो बच्चे थोड़े बहुत पढ़े हैं। उनका संघर्ष भी काफी ज्यादा रहा है। इसका उदाहरण वे अपनी कविता 'आदिवासी गाँव में इंटर पास छात्र का सपना' में करते हैं। वे इस कविता के माध्यम से कहना चाहते हैं कि मैं आखिरकार मिशन की स्कूल से स्कूल की शिक्षा पास हो गया। लेकिन मुझे इंटर पास होने के लिए काफी पारिवारिक संघर्ष करना पड़ा। वे अपने दादा से बार-बार बारहवीं तक कि शिक्षा ग्रहण करने के लिए बिनती कर रहे हैं।
वे कह रहे हैं कि दादा मैं बारहवीं पास करके छोटी-मोटी नौकरी प्राप्त कर लूँगा। मुझे पढ़ाई करने दो। पैसे की चिंता ना करो इस साल बारिश अच्छी हुई है। धान की खेती अच्छी होगी। इसके साथ हम खेतों में आलू, मटर, गोबी की फसल भी उगा सकते हैं।उससे हमारी आमदनी ज्यादा होगी और पढ़ाई में मुझे कोई भी दिक्कत नहीं होगी। मैं आपसे कोई भी चीज नहीं मागूँगा जिससे खर्चा ज्यादा हो सकें। क्योंकि अपने गाँव में आपको मुझे पढ़ने के चक्कर में काफी अपमानित होना पड़ा है।
इस प्रकार से कवि अपने शैक्षणिक संघर्षों के विविध पहलू काव्य में व्यक्त करते हैं।
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