गुरुवार, 2 जनवरी 2025

आज़ाद देश में स्त्री की दशा एवं दिशा:चंद्रमोहन किस्कू की कविता (Aajad desh mein stri ki dasha aur disha:chandramohan kisku ki kavita)

 

आज़ाद देश में स्त्री की दशा एवं दिशा:चंद्रमोहन किस्कू की कविता

-Dr. Dilip Girhe


आज़ादी

देश तो आज़ाद हुआ 

पर मैं कहाँ आज़ाद हुई 

सर ऊँचा कर चल सकूँ 

वैसी सड़क कहाँ बनी ?


देश तो आज़ाद हुआ 

पर, मेरे ऊपर 

आज़ादी की हवा कहाँ चली 

कितनी कलियाँ पेट में ही 

झड़ गईं


जो बाहर निकलीं कलियाँ 

वे भी कहाँ खिल पाईं 

खिलने से पहले ही

तहस-नहस कर दी गईं।


देश तो आज़ाद हुआ 

पर, स्वतंत्र पहचान 

मुझे कहाँ मिल पाई 

कभी मुझे कहते हैं देवी 

कभी नौकरानी

तुम्हारे दो आँखों से 

मैं मनुष्य ही कहाँ हो पायी ?


देश तो आज़ाद हुआ 

पर मैं स्वतंत्र मन से 

कहाँ चल पा रही हूँ 

कह तो रहे हो 

भारत दुनिया का श्रेष्ठ 

पर देश की सभी 

गलियों से गुज़रने में 

मुझे डर लगता है।


देश तो आज़ाद हुआ है 

पर हर दिन 

औरतों की आँसू से 

मिट्टी क्यों भींग रही है?


बदलने होंगे सखियो 

यह सुनहरा भारत वर्ष 

औरतों को इज्जत मिले 

आँसू उनके न गिरें 

खिले फूल जैसे हर दिन 

हँसते रहे।

-चंद्रमोहन किस्कू-महुआ चुनती आदिवासी लड़की


काव्य संवेदना:-

प्राचीन काल से ही स्त्री की अवस्था केवल 'चूल आणि मूल' (चूल्हा और बच्चा) ऐसी ही देखी गई है। अर्थात स्त्री को केवल खाना बनाना और अपने बच्चों का संभाल करना इस काम को ही प्राथमिकता दी जाती है। आज के युग में शिक्षा के कारण भले ही थोड़े बदलाव दिखाई दे रहे हैं। किन्तु फिर भी स्त्री उतनी आजाद आज भी नहीं हुई है जितनी होनी चाहिए थी। ऐसे अनेक संदर्भ चंद्रमोहन किस्कू ने अपनी कविता 'आज़ादी' में व्यक्त किए हैं। वे अपनी कविता में स्त्री की दशा और दिशा को स्पष्ट करते हैं। वे कहते हैं कि देश तो आज़ाद हुआ किन्तु स्त्री आज भी आज़ाद नहीं हो पाई है। वह आज भी रास्तों से सिर उठाकर चल नहीं सकती है। आजाद देश में आज भी बच्ची या लड़की के जन्म का स्वागत नहीं किया जाता है। पितृसत्तात्मक परंपरा का आज भी असर दिखता है। आज भी बाल भ्रूण हत्या की जाती है। सरकार ने भले ही इसपर रोक लगाई है। स्त्री का स्थान समाज में दुय्यम ही दिखाई देता है।

आजाद देश में एक तरफ देवी की पूजा की जाती है दूसरी तरफ उसी देवी स्त्री को घर में एक नौकरानी का दर्जा दिया जाता है। फिर वह मनुष्य प्राणी कहा हो पाई है। स्वतंत्र देश में आज स्त्री को शहर के किसी गल्ली से जाने डर लगता है। आज स्त्री के आँसू से गाँव की मिट्टी भीग रही है। यह चलचित्र आज हमें बदलना होगा तभी स्त्री एक सक्षम रूप से समाज में जी पाएगी। और सम्पूर्ण भारत वर्ष में स्त्री को देखने का नजरिया बदल जायेगा। 

इस प्रकार से चंद्रमोहन किस्कू ने अपनी कविता स्त्री आज़ादी का महत्व स्पष्ट किया है।

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