मंगलवार, 7 जनवरी 2025

भूख की आग में डिग्रीयां चुपचाप है:जसिंता केरकेट्टा (Bhukh ki Aag mein Dgreeyan Chupchap Hai:Jacinta Kerketta-Aadiwasi kavita)

भूख की आग में डिग्रीयां चुपचाप है:जसिंता केरकेट्टा

-Dr. Dilip Girhe


भूख का आग बनना

भूख जब आग बन रही हो 

तब डिग्रियां चुपचाप उठकर 

उस आग की ओर चल देती हैं, 

और कागज पर उतरने से पहले 

स्याही की देह, घुलने लगती है 

किसी गहरी चिंता में।


तब, रात भर खटिया की रस्सी 

लगती है थोड़ी और खुरदुरी 

जैसे उसी खुरदुरेपन पर 

जिंदगी, बार-बार उठकर 

फिर चलने की कोशिश कर रही हो।


तब, मुर्गे के बांगने से पहले ही 

हो जाती है एक सुबह 

और धूप निकलने तक 

आंगन में ऊंघती रहती है रात ।


तब एक दिन 

उठती है कहीं 

कुरथी की दाल से 

भाप की लहक, 

पत्ते में लिपटी 

रोटी से राख की महक 

और बदल जाती है कविता में।


कविता, भूख की आग पर 

पकती हुई गुनगुनाती है, 

और उठने लगती है एक साथ 

कई घरों की आग 

भूख के सारे कारणों के खिलाफ ।।

-भूख का आग बनना-अंगोर (काव्य संग्रह)


काव्य संवेदना:

आज काव्य ने भूख की आग पर गुनगुना शुरू किया है। वह भूख किसी भी व्यक्ति के जीवन को देखने परखने पर उसे बोलने लगी है। आज कई घरों की भूख की तिलमिला जाग उठी है। ऐसे कई भूखे घरों की कहानी का चित्रण कवयित्री जसिंता केरकेट्टा ने 'भूख का आग बनाना' कविता में किया है। कवयित्री कहती है कि भूख जब आग बन जाती है तो सभी डिग्रीयां चुपचाप बन बैठी रहती है। यह डिग्रीयां न अपना वजन बताती है न कोई पहचान। जब धीरे-धीरे यह सब डिग्रीयां उठकर भूख की आग मिटाने चली जाती है तो कागज पर उतरने से पहले ही वह स्याही का देह चिंता में घुलने लगती है।

ऐसी भूख की डिग्रीयों पर आज हर कोई चिंतित है। क्योंकि इस पर हर कोई चिंता जताने की कोशिश कर रहा है। इससे हम समझ सकते हैं कि किसी की भी जिंदगी बार-बार उठकर फिर से अपना पैर जमाने के लिए कोशिश करती रहती है। क्योंकि उनकी जिंदगी में भी भूख की चिंता दूर कैसी हो पाए यह प्रश्न बार-बार उठता है। जब भूख की चिंता महसूस होती तो सुबह भी मुर्गे के बाग देने के पहले ही हो जाती है और रात धूप निकलने तक आँगन में घूमती रहती है। अचानक एक दिन कुरथी की दाल से भाप की लहक उठती है। वह कविता पत्ते में लिपटकर रोटी से लेकर राख की महक तब्दील हो जाती है।

इस प्रकार से कवयित्री जसिंता अपनी कविता में भूख की आग की डिग्रीयों का महत्त स्पष्ट करती है।

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