चंद्रमोहन किस्कू की कविता में पेड़ लगाने के उपदेश के संदर्भ
-Dr. Dilip Girhe
चलो पेड़ लगाते हैं
आसमान में काले बादल
मँडरा रहे हैं
पर वर्षा
नहीं हो रही।
आँसू बह रहा है
गला सूख रहा है
पर उदास बादल तो
उतर ही नहीं रहे हैं।
हवा गर्म हो रही है
मिट्टी फट रही है
और धरती माँ की तो
जान ही निकल रही है।
आसमान में काले बादल
मँडरा रहे हैं
पर वर्षा
बिलकुल भी नहीं हो रही है।
पपीहे बोले
मोर नाचे
कोयल गायी
मीठी स्वर में...
और मछलियाँ
पानी के बिना मर रही हैं।
मौसम भी भटका है
पृथ्वी गर्म हो गई है
पक्षी पानी के लिए
तरस रहे हैं
और धरती की गोद के
जीव-जन्तु
ताक रहे हैं आसमान की ओर
वर्षा की आशा से...।
आसमान में काले बादल
मंडरा रहे हैं
पर वर्षा बिलकुल नहीं हो रही है।
जंगल-पहाड़ उजड़ कर
शहर-नगर बसा रहे हैं
कल-कारखाने बन रहे हैं
पेड़-लताओं पर
दुश्मनों की बुरी नज़र
लगी है।
हरे पेड़ न होने के कारण
जंगल-पहाड़ न होने के कारण
आसमान का बादल भी उदास है
वह धरती माँ की गोद में
नहीं उतर रहा।
आसमान में काले बादल
मंडरा रहे हैं
पर वर्षा
नहीं उतर रही।
चलो पेड़ लगाते हैं
जंगल-पहाड़ को बचाते हैं
पूरी धरती को
हरी बनाते हैं
तभी तो काले बादल
धरती पर उतरेंगे
और हमारी जान बचाएंगे।
-चंद्रमोहन किस्कू-महुआ चुनती आदिवासी लड़की
काव्य संवेदना:
आज मनुष्य ने अपने विकास के लिए पेड़ को बलि चढ़ाया है। वह उन्नति तो कर रहा है किंतु पृथ्वी पर के हजारों वृक्षों को उजाड़कर। अगर पृथ्वी तल के सभी पेड़ नष्ट हो जाते तो मनुष्य का यह विकास विनाश का कारण बन जायेगा। इन जैसे अनेक प्रश्नों को आदिवासी कवियों अपनी कविताओं में उठाया है। कवि चंद्रमोहन किस्कू ने अपनी कविता चलो पेड़ लगाते हैं। इस कविता यह उपदेश दिया कि आसमान में काले बादल मंडराने लगे हैं। परन्तु वर्षा नहीं हो रही है। सबके आँसू बह रहे हैं गला सूख रहा है फिर भी वर्षा नहीं हो रही है। गर्म हवाओं झोंका इधर से उधर आकर जा रहा है। ज़मीन की सभी मिट्टी फट कर अलग-अलग हो गई है। पर बारिश नहीं हो रही है। इसकी मुख्य वजह यही रही है कि पृथ्वी पर पेड़ों की कमी हो गई है।
इसी हालात में पपीहे बोल रहे हैं मोर नाच रहे हैं। कोयल मीठी स्वर में गाना गा रही है। ऐसे में मछलियां बीना पानी के मर रही है। पृथ्वी की चारों ओर की जमीन गर्म हो गई है। पक्षी पानी के लिए चूं चूं करके तरस रहे हैं। इसके साथ ही धरती माँ के गोद में जितने भी जीव-जंतु रह रहे हैं। वे सभी के सभी पानी-पानी कर के मर रहे हैं। फिर भी आसमान से बारिश होने की आशा ढक गई है। पृथ्वी तल के जंगल पहाड़ों को उजाड़कर बड़े-बड़े शहर तैयार हो रहे हैं। इसी कारण आसमा के बादल बहुत निराश हो गई है। वह बरसने के लिए तैयार ही नहीं हैं। इसीलिए कवि बार-बार अपनी कविता के माध्यम से सभी मनुष्य प्राणियों के संदेश दे रहे हैं कि हे संगी चलो पेड़ लगाते हैं। पृथ्वी को बचाते हैं। हमारी जान को बचाते हैं।
इस प्रकार से कवि ने वृक्षों का वृक्षारोपण करने का संदेश अपनी कविता के माध्यम से दिया है।
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1 टिप्पणी:
Ati sundar .
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