निर्मला पुतुल के काव्य में गमछा का महत्व
-Dr. Dilip Girhe
गमछा
गमछा का दैनिक जीवन में बहुत महत्त्व है
गमछा जो कभी सर की पगड़ी बन जाता है
तो कभी बिछौना बना जाता है
कभी चादर की तरह लपेट लेते हैं
तो कभी गले में डालकर चलते हैं
गमछा जो कभी बाँधने के काम में आता है
तो कभी पोंछने के काम में आता है
मुझे याद है जब-जब मेरे आँसू गिरे
इसी गमछे ने सोख लिए मेरे आँसू
गमछे से ही पोंछे हमने भींगे बाल
और कभी पाँव
गमछा कितना उपयोगी है हमारे जीवन में
हमारी दिनचर्या में शामिल होता है गमछा
सुबह उठने से लेकर रात सोने तक
इसी गमछे में कभी हमने आम चुनकर लाई
तो कभी धान
इसी गमछे में दुःख बाँधकर ले जाती हैं
मेरी माँ खेत पर
कभी अरमान तो कभी सपने
और कभी दिल को बाँधकर
लटका दिये अरगनी पर और
निकल गये अपने काम पर...।
-निर्मला पुतुल-बेघर सपने
काव्य संवेदना:
मनुष्य के जीवन उसके सानिध्य में आने वाली हर एक चीज का महत्व है। इसी वजह से इन जैसे चीजों को कवि नहीं भूल सकता है। वह चीज नैसर्गिक हो या मनुष्य ने बनाई हो। कवयित्री निर्मला पुतुल ऐसे ही चीज गमछा का महत्व बताती है। गमछा का प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अनन्य साधारण महत्त है। वह कभी सिर पर पगड़ी बनकर तो कभी बिचौना बनकर काम आता है। मनुष्य इसका चादर बनाकर भी ओढ़ने के लिए उपयोग करता तो कभी गले में शोभा के लिए भी डालकर चलते हैं। वह शान या परंपरा का प्रतीक भी है।
कई वस्तुओं को एकत्रित बांधने के लिए भी गमछा का प्रयोग होता है कभी आँसू पोछने या फर्श पोछने के भी काम आता है। बीघे बाल या पाँव को पोछने के लिए भी गमछा का उपयोग होता है। अतः गमछा का हमारे दैनंदिन जीवन में सुबह उठने से लेकर शाम को सोने तक उसका उपयोग होता रहता है। कवयित्री कहती है कि यह गमछा में हमने कभी आम तो धान बांधकर लाये हैं। ऐसे क्षणिक चित्रों को कभी भूला नहीं जा सकता है। यह गमछा हजारों लागों का दुःख बांधकर भी ले जाता है। सुख और दुख दोनों प्रसंगों में इसका उपयोग होता है। माँ कभी कभी इसी गमछा का झूला बनाकर अपने बच्चों को सुलाने के लिए उपयोग करती है। तो आदिवासी महिलाएं अपने पीठ पर इसी गमछे में बच्चों को बिठाकर काम करती है। यह गमछा मनुष्य के कई अरमानों को पूरा करता हूं।
इस प्रकार से निर्मला पुतुल ने अपनी कविता में गमछा के कई उपयोगी संदर्भ बताए हैं।
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