निर्मला पुतुल की कविता में आदमी के बदलते मिजाज़
-Dr. Dilip Girhe
समाज
समाज बदल रहा है
बँट रहा है टुकड़ों-टुकड़ों में
समाज पहले भी बदलता था
आज भी बदल रहा है
और कल भी बदलता रहेगा
समाज का बदलना कोई नई बात नहीं है
नयी बात कुछ है तो वह है
कि समाज के साथ आदमी का बदलना
क्या उतनी तेजी से बदल रहा है आदमी
समाज जो आदमी की गलती से
समाज की परिभाषा में अपने से चूक जाता है
उस पर आदमी और समाज के बीच
बहस होनी चाहिए
वैसे यह सच है कि समाज में
बहस चलती रहती है
जिससे बदलता रहता है
आदमी का मिजाज़
इसलिए आदमी के बदलते मिजाज
और समाज के बिगड़ते
स्वरूप के संतुलन के लिए
जरूरी है आदमी और
समाज के बीच बहस होना
एक ऐसी बहस जिससे समाज का हर
तबका शामिल हो सके
दलित हो या पिछड़ा
सबको संवाद का अवसर मिलना चाहिए
एक ऐसी बहस की जरूरत है समाज से।
-निर्मला पुतुल-बेघर सपने
काव्य संवेदना:
आज भारतीय समाज व्यवस्था टुकड़ों-टुकड़ों में बटी हुई है। सामाजिक परिवर्तन कई-न-कई जारी प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया प्राचीन काल से चली आ रही है। आज भी जारी है। सामाजिक बदल समय की मांग कही जा सकती है। समाज के साथ आदमी की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसीलिए समाज और आदमी का संबंध एक दूसरे पर निर्भर होता है। समाज के साथ-साथ आदमी को बदलना जरूरी है। इस बात को लेकर आदिवासी कवयित्री निर्मला पुतुल 'समाज' कविता में कई मुद्दों को रेखांकित करती है। वह कहती है कि जो समाज टुकड़ों में बंटा हुआ है। उसके लिए आदमी ही जिम्मेदार है। आदमी के कारण ही सामाजिक बदलाब पाए गए हैं। इसीलिए समाज बदलना कोई नहीं बात नहीं हो सकती है। किंतु समाज के साथ आदमी का बदलना जरूरी है।
कवयित्री आगे कहना चाहती है कि समाज और आदमी के बीच निरंतर बहस होनी आवश्यक है। वह बहस एक समतामूलक समाज को स्थापित करने के लिए जरूरी है। जब-जब यह बहस होती रहेगी तब-तब उस आदमी का मिजाज़ भी बदलता रहेगा और समाज के जो संबंध बिगड़ रहे हैं । उसको एक संतुलित रूप देने के लिए आदमी का मिजाज़ काम करेगा। ऐसा नहीं है कि समाज के बीच बहस होना जरूरी नहीं है। यह बहस समय-समय जरूर होने चाहिए जिससे समाज मे व्याप्त समस्याओं पर हल निकल सकते हैं। इस बहस में समाज के संपूर्ण वर्गों को शामिल करना आवश्यक है। चाहे गरीब हो, अमीर हो, दलित हो, आदिवासी हो, मजदूर हो या किसान हो। उसमें संवाद करने का सुअवसर सबको मिलना चाहिए। जिससे समाज और आदमी बदल सके।
इस प्रकार से कवयित्री निर्मला पुतुल समाज और आदमी को बदलने के लिए संवाद के माध्यम से परिवर्तन की बात करती है।
1 टिप्पणी:
बदलाव तो होरहा है सर आपके इस ब्लॉग के पहलसे !
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