सोमवार, 20 जनवरी 2025

शिशिर टुडू के काव्य में उलगुलान की पुनरावृत्ति (Tribal Poem-Shishir Tudu-Kalam ko teer hone do)

शिशिर टुडू के काव्य में उलगुलान की पुनरावृत्ति

-Dr. Dilip Girhe


फिर होगा उलगुलान

मेरे शहर में 

विगत कुछ वर्षों में कमाल हो गया है 

एअरपोर्ट, बन्दीगृह से लेकर 

होटल, जूते की दुकान तक से 

शहीद बिरसा मुंडा का नाम जुड़ना 

मेरे लिए एक बड़ा सवाल हो गया है


यह सही है कि 

जिन्होंने दुकानों, होटलों के रखे नाम 

उन्होंने शहीद का नाम ही सुना होगा 

न उन्होंने पढ़ा होगा उनका इतिहास, न उन्हें जाना होगा 'बिरसा ने मारा बाघ' कभी बचपन में पढ़ा होगा 

किंतु इस कथा के मर्म से 

वह अनजाना होगा 

'बिरसा' कौन था और कौन था 'बाघ' 

इसे न वह समझा होगा-न जाना होगा


मूल भाव कथा का 

है निहित इसी में

'शोषित' व 'शोषक' को 

पहचानना होगा 

बिरसा थे जननायक, नहीं थे लकड़हारा 

थे 'रोगहर' सबके

शोषितों के सहारे 

स्वराज था मूलमन्त्र उनका 

करते हम सब हृदय से उनको 

नमन


'उलगुलान' की कथा 

जब-जब सुनाई जायेगी 

उनके बलिदान की बहुत याद आयेगी 

बिरसा सामान्य नहीं 

युग-पुरुष थे 

अपनी हस्ती मिटा कर जिन ने 

फूँके थे प्राण 

ऐसे युग-पुरुष को तुम्हें देना होगा 

सम्मान

नहीं तो सच कहता हूँ 

झूठ नहीं 

एकबार फिर होगा उलगुलान !

        -शिशिर टुडू-कलम को तीर होने दो...


काव्य संवेदना:-

21 वीं सदी में महापुरुषों के विचारों को पुनर्जीवित करने का काम साहित्य या विविध ग्रंथ लेख संपदा कर रही है। इसी वजह से आज हम महापुरुषों के विचारों को समझ पा रहे हैं। जिस प्रकार से डॉ भीमराव अंबेडकर के विचारों से समाज में 'जयभीम' नई क्रांति चली आ रही है। उसी प्रकार से आदिवासी समाज भी बिरसा के उलगुलान की क्रांति से प्रेरित हो रहा है। ऐसे मुद्दों पर आदिवासी कवियों ने अपनी कलम चलाई है। 

शिशिर टुडू ने अपनी कविता 'फिर होगा उलगुलान' कविता में कहा है कि विगत कुछ वर्षों से बिरसा के उलगुलान की क्रांति एयरपोर्ट से लेकर होटेल दुकानों तक फैल गई है। इसके लिए बिरसा का बलिदान व्यर्थ नहीं गया है। इतना ही नहीं बिरसा का नाम आप विश्वविद्यालयों, सरकारी कार्यालयों को भी दिया जा रहा है। यानी उलगुलान क्रांति की अस्मिता अब बड़े-बड़े दीवारों पर दिख रही है। अब जनता बिरसा के बाघ को जानने लगी है। उनके योगदान को जानने लगी है। बिरसा के कथा मर्म से हम जान गए हैं। बिरसा मुंडा की पहचान। बिरसा के आंदोलन के दोन वर्ग प्रमुखता से देखे गए हैं। शोषित और शोषक। जो वर्ग अन्याय अत्याचार को सहता आया है उसे शोषित वर्ग कहते हैं। जो वर्ग अन्याय-अत्याचार करता आया है उसे शोषक वर्ग कहते हैं।

इसकी बात बिरसा के उलगुलान में की गई है। यानी कि बिरसा के उलगुलान की कथा जब-जब सुनाई जाएगी तब-तब बिरसा के क्रांति को भूला नहीं जा सकता है। यानी कि बिरसा की क्रांति युगों-युगों से चली आने वाली क्रांति है।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

Ati sundar