बुधवार, 22 जनवरी 2025

बीएल भूरा भाबरा के काव्य में परथी भाई के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी (tribal-poetry-Aadiwasi Jannayak parthi Bhai)

बीएल भूरा भाबरा के काव्य में परथी भाई के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी


परथी भाई भूरा,  स्वतंत्रता संग्राम सेनानी

गांव-मालमसुरी,रिगोंल।

भाबरा जिला अलीराजपुर मध्यप्रदेश।।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी  महान।

सब समाज करते उनका  सम्मान।।

यह युवा प्रेरणा दिवस उनके नाम।

हिंदुस्तान  की  थे  वो शान।।


देश की संस्कृति को बचाया।

हिंदुस्तान  का  मान बढ़ाया।।

सच  रहा  पर वो  सदा  चले।

धार्मिक का पाठ सबको पढ़ाया।।


गरीब की मदद करो बताया।

दिलों में देश का प्रेम जगाया।।

प्यार परथी भाई भूरा जी ने।

देश हित मार्ग सबको दिखाया।।


समाज सेवा करना ही उनका था।

नशाबंदी आन्दोलन कर समाज

समाज में नशा रहे दूर घरेलू पीड़ा

नशा घर परिवार समाज बर्बादी।


सच्चे थे स्वतंत्रता संग्राम  सेनानी

न थी मन में लालचा,न घमंड

बिना खाए नौ दिन तक जेल 

युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा।


लब पे  प्यार के बोल  सजाएं।

किसी का न हम दिल दुखाएं।।

सबका  जो  करते है सम्मान।

जीवन में वही महान कहलाएं।।

-बीएल भूरा भाबरा जिला अलीराजपुर मध्यप्रदेश


कविता की संवेदना:

आदिवासी क्षेत्र में अंग्रेजो के जमाने के स्वतंत्रता आन्दोलन में अनुसुचित जनजाति के ग्रामीणजनों द्वारा स्वमंत्रता आन्दोलन में भाग लिया। परथीभाई आदिवासी क्षेत्र के एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जिनके द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेकर आदिवासी समाज का ना रोशन किया तथा चन्द्रशेखर आजाद से प्ररणा लेकर अंग्रेजो के विरुद्ध स्वयं आजादी का बिगुल बजाया। गांधीजी की दांडी यात्रा, जेल भरो आंदोलन जैसे अनेक उल्लेखनीय कार्यों में अपना योगदान दिया। परथीभाई के बारे में बुजुर्ग लोगों का कहना है कि इन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में अनेको कार्य किये परन्तु ग्रामीण क्षेत्र में होने के कारण इनका बलिदान कहीं खोकर रह गया।

अभी तक इनके कार्यों एवं इनकी उपलब्धि किसी भी प्रकार से प्रकाशित् नहीं हो पाई है। प्रथम बार ही इनके जीवन गाथा का प्रकाशन हो रहा है। ऐसे स्वतंत्रता सेनानी के श्रीचरणों में शत्-शत् नमन एवं श्रद्धांजली अर्पित । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी सेनानी श्री परथीभाई जादव का जन्म 12 जून 1912 को ब्रिटिश शासनकाल में ग्राम रिंगोल (मालमसुरी), रियासत आलीराजपुर तहसील भाबरा निवासी आदिवासी परिवार श्री वसनाभाई जादव के यहाँ हुआ। माता का नाम श्रीमती जवरीबाई था। वसनाभाई जादव कृषक एवं माता गृहणी थीं। बचपन के दस ग्यारह वर्ष अपनी जन्मभूमि में बिताने के बाद में अपने नाना जी की प्रेरणा एवं सहयोग से मामाजी के घर ग्राम भुतरडी चले गये। जो तालुका दाहोद, जिला पंचमहल, गुजरात में स्थित है। श्री ठक्कर बापा द्वारा संचालित शाला (भील सेवा मंडल) गरबाड़ा में सन् 1925 में प्रवेश लेकर प्राथमिक शिक्षण प्रारम्भ कर चौथी कक्षा तक अभ्यास करने के बाद पाँचवी कक्षा के लिए जेसावाड़ा आश्रम में प्रवेश लिया, जिसका संचालन श्री पांडूरंग कोपिक वणीकर आचार्य जी द्वारा किया जाता था।

कक्षा सातवीं का अभ्यास प्रारम्भ था, तभी 1930 में शराब बन्दी आन्दोलन आरम्भ हुआ। इससे प्रभावित होकर आश्रम से आन्दोलन में अपने अनेक साथियों के साथ हिस्सा लिया। 12 दिन तक गौशाला दोहद में काँग्रेस छावनी में रहे। यहाँ रहकर इन्होंने शराब की दुकानों पर पिकेटिंग किया। उसी दौरान प्रथम बार बारह रोज कार्य करने के बाद इन्हें साथियों को तत्कालीन ब्रिटिश शासन द्वारा प्रथम कार्यवाही कर बंदी बनाया गया। 4 दिन तक बन्दीगृह में रहने के बाद प्रथम श्रेणी मॅजिस्ट्रेट दोहद द्वारा चार माह के कारावास की सजा दिनांक 29 अक्टूबर 1930 से 28 फरवरी 1931 तक सुनाई गई। एक माह तक अहमदाबाद के जेल में रखा गया। उस समय इनके साथ श्री डाहयाभाई, जीवन जी नायक आचार्य, श्री सुखदेव काका भील सेवा मंडल दाहोद वाले साथ थे। अहमदाबाद जेल में स्थानाभाव के कारण इन्हें लगभग दो सौ लोगों के साथ यर्वडा सेन्ट्रल जेल पूना भेज दिया गया जहां शेष 3 माह की सजा पूरी की। उसके बाद वे देश सेवा से प्रभावित्त होकर देशभक्त खुदीराम बोस, चन्द्रशेखर आजाद सहित अब्दुल गफ्फार खां जैसे वीरों के संपर्क में आए। इसके बाद शहीद चन्द्रशेखर आजाद एवं दादा परथीभाई जादव दोनों भाभरा से शुरुआती साथी बने रहे।

परथीभाई जादव चन्द्रशेखर आजाद को समय-समय पर दिशानिर्देश और सहयोग प्रदान करते रहे अर्थात् देशसेवा करने के लिए कूद पड़े। शहीद चन्द्रशेखर आजाद 14 वर्ष की आयु में माभरा से वाराणसी जा चुके थे। ब्रिटिश शासन काल शहीद चन्द्रशेखर आजाद को क्रांतिकारी घोषित कर जिन्द्रा गिरफ्तार करने पर ईनाम घोषित कर दिया था। चंद्रशेखर आजाद अपनी मां से मिलने के लिए चोरी-छिपे भाभरा आते थे एवं जंगलों में रहते थे।परथीभाई जादव के वर्तमान में जीवित साथी श्री सेवलाभाई एवं देवलाभाई नलवाया (आयु 90 वर्ष) के वक्तव्य अनुसार उसी दौरान शहीद चंद्रशेखर आजाद ने परथीभाई जादव के साथ माल मसूरी के जंगल में आखेट किया एवं परथीभाई जादव से तीर-कमान और गोफन बलाना सीखा था। जलियांवाला बाग आंदोलन के समय परथीभाई जादव ने अपने दो साथियों के साथ चरवाहे का रूप धरकर शहीद चन्द्रशेखर आजाद को दाहोद रेल्वे स्टेशन से अमृतसर जाने के लिए ट्रेन में बिठाया था। साथ देने का निर्णय लिया जहां उन्होंने चरखा भी चलाया। परथीभाई जादव साबरमती आश्रम से प्रारंभ दांडी यात्रा में महात्मा गांधी जी के साथ शामिल हो गए। उसके साथ ही महात्मा गांधी के साथ कई आंदोलनों में शामिल हुए और जेल गए। जेल से रिहा होने के बाद वापस आकर देश प्रेम से प्रभावित होकर गांव रिंगोल के सरपंच निरंतर पैतीस वर्ष तक रहे। गांधीनगर में दांडी यात्रा के दौरान स्थापित मूर्तियों में दादा परथीभाई जादव की मूर्ति भी स्थापित है और शिलालेख में नाम शामिल है। इसी प्रकार तत्कालीन झाबुआ जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के भामरा स्थित शिलालेखों में दादा परथीभाई जादव का उल्लेख भी अंकित है।

देश सेवा के लिए उन्होंने स्वयं के खर्चे पर दो वर्ष तक गांव रिंगोल में प्राथमिक स्कूल का संचालन किया। उसके बाद सात वर्ष तक ग्रामीणों के सहयोग से इस स्कूल का निरंतर संचालन किया। दादा परथीभाई जादव ने ग्राम लाडीवरिया में प्रथम शासकीय स्कूल मी प्रारंभ करवाया और सात गावों की पंचायत रिंगोल के सरपंच रहते हुए इन्होंने शिक्षा, सामाजिक सुधार, आर्थिक सुधार, आवागमन के साधन, सिंचाई सुविधाओं के विकास एवं गरीबों के उत्थान के लिए सदा प्रयासरत रहे।

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