रोज केरकेट्टा के काव्य में बसन्त महीने का गुणगान
-Dr. Dilip Girhe
बसन्त अकेला नहीं आता
बसन्त अकेला नहीं आता
इसके अगल-बगल
होतीं हैं दो ऋतुएँ
एक ओर सर्द हवा
दूसरी ओर धधकती धूप
बसन्त अकेला नहीं आता
झरते पत्ते
पल्लव भी आते साथ साथ
ही आतीं कलियाँ
और उनके कच्चे फल
बसन्त के साथ सदैव ही
लगा रहता
संयोग और वियोग
आसमान नीला
रोशनी तेज
उजरी-उजरी धरती
पर सोता रहता चाँद
होते ही रात
ले आता रात वह चाँदनी...
-रोज केरकेट्टा-कलम को तीर होने दो
काव्य की संवेदना:-
पृथ्वी के हर एक प्रदेश पर ऋतुमान अलग-अलग दिखाई देते हैं। भौगोलिक परिस्थितियों की विविधता ही पृथ्वी की खास विशेषता है। ऐसे में भारत वर्ष में ऋतुमान गतिशील दिखाई देता है। हर एक ऋतु का अपना खास महत्व या विशेषता होती है। कवयित्री रोज केरकेट्टा ने अपनी कविता 'बसंत अकेला नहीं आता' कविता में बसन्त ऋतु की विशेषताओं का महत्व विशद किया है। वे लिखती हैं कि बसन्त ऋतु का जब आगमन होता है तो वह अकेला नहीं आता। उसके साथ कई प्रकार के ऋतुमान बदलते हुए मिलते हैं। यह ऋतु दो धाराओं का संगम है। एक धारा वह है जो सर्द हवा को लेकर बहती है। तो दूसरी धारा धधकती धूप चलती रहती है।
वे आगे लिखती है कि बदलते बसन्त मौसम में कई प्राकृतिक बदलाव भी पाए जाते हैं। उसमें पल्लव के पत्ते झरते हुए दिखाई देते हैं। तो कुछ-कुछ झाड़ों-पतों को फूल की कलियाँ लगने लगती है। कच्चे फल-फूल भी आते हैं। यह संयोग और वियोग की कहानी इस मौसम की खास विशेषता है। इसके साथ-साथ ही चारों ओर आसमान नीला-ही-नीला नजर आता है। रोशनी की तेज रफ़्तार भी आगे बढ़ती हुई दिखाई देती है। चांद भी अपने बदलाव दिखाता है और चांदनी को संग लेकर चलता है।
इस प्रकार से रोज केरकेट्टा बसन्त ऋतु की संयोग और वियोग की कहानी प्रस्तुत करती है।
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