गुरुवार, 23 जनवरी 2025

पुस्तक पढ़ने से वजूद की पहचान होती है:रोज केरकेट्टा (tribal poetry-roj kerketta-sirf pustak mat padhana)

पुस्तक पढ़ने से वजूद की पहचान होती है: रोज केरकेट्टा

-Dr. Dilip Girhe


सिर्फ पुस्तक मत पढ़ना 

सिर्फ पुस्तक मत पढ़ना 

पुस्तक की बातों को पढ़ना 

सिर्फ आँखों से पुस्तक मत पढ़ना 

दिमाग खोल कर पढ़ना 

पुस्तक पढ़कर 

हक को जानना


कानून को जानना 

साथी को जानना 

और पहचानना बैरी को 

यह हक है तुम्हारा


मित्र है पुस्तक 

आँख खोलती है 

साहस बढ़ाती है 

वजूद को पहचान दिलाती है 

इसलिए बार-बार पुस्तक पढ़ना...!

-रोज केरकेट्टा-कलम को तीर होने दो 


काव्य संवेदना:

कहा जाता है कि पुस्तक पढ़ने से मस्तिष्क सुधार जाता है। यानी हम जब पुस्तक पढ़कर खत्म करते हैं तो उसे पढ़कर नही  छोड़ना चाहिए। बल्कि उस पुस्तक के मूल विचार ग्रहण करना चाहिए। कवि रोज केरकेट्टा इसी विचारों को 'सिर्फ पुस्तक नहीं पढ़ना' कविता में व्यक्त करती है। कवयित्री कहती है कि पुस्तक को पढ़ते समय सिर्फ उसे पढ़कर छोड़ना नहीं चाहिए तो उस पुस्तक की मन की बात पढ़नी आवश्यक है। दिमाग़ को सतर्क रखकर यदि हम पुस्तक या उसमें से विचार को ग्रहित करते हैं। तब हम अपने हक-अधिकारों को भी समझ सकते हैं। 

इसके साथ कवयित्री आगे लिखती है कि पुस्तक को तन-मन से पढ़ने से पुस्तक के विचारों के साथ-साथ हम अपनी अस्मिता या पहचान एवं अस्तित्व को भी समझ जाते है। मनुष्य की सबसे करीब मित्र है पुस्तक क्योंकि पुस्तक पढ़ने से मनुष्य का साहस और आत्मविश्वास भी बढ़ जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि हम अपने वजूद को जान पाते हैं। 

इन प्रकार से कवयित्री रोज केरकेट्टा अपनी कविता के माध्यम से तन और मन से पुस्तक पढ़ने का महत्व बताते हैं।

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