स्त्री पर लादो नहीं इतना अति: सरितासिंह बड़ाईक
-डॉ.दिलीप गिऱ्हे
अति
मैं न तो बिजली हूँ
कि स्विच दबाया
तो जल गयी
न ही मैं रेडियो-टीवी हूँ
कि ऑन किया
तो बज उठी
प्राण हूँ मैं
संवेदना हूँ
यथोचित शक्ति हूँ
लादो नहीं मुझ पर इतनी
अति
बिजली भी तोड़ देती है
इयत्ता रक्त चूस कर ही छोड़ती है!
-सरितासिंह बड़ाईक-कलम को तीर होने दो
काव्य संवेदना:
साहित्यिक परिप्रेक्ष्य में अति शब्द का अर्थ देखा जाए तो अनेक प्रकार के अर्थ मिलते हैं-बहुत, ज्यादा, अधिक मात्रा, अन्याय-अत्याचार, किसी चीज का उल्लंघन करना, जो मात्रा में ज्यादा हो, किसी भी चीज का अतिक्रमण करना। यानि कि कवयित्री सरितासिंह बड़ाईक अपने 'अति' कविता के माध्यम से बताना चाहती है कि कोई भी जीज का यदि अति हो जाता है। उस पर प्रतिरोध निश्चित रूप में हो जाता है। लेखिका यही संदेश देती है। वे स्त्री शोषण के पक्ष पर बोलती है। वे स्त्री रूप को आगे रखकर कहती है कि स्त्री न बिजली है, न स्विच है, न ही रेडियो या टीवी है। जब चाहिए बंद किया जाये। स्त्री की कई संवेदनाएं हैं। उन संवेदनाओं को न किसी टीवी, रेडियो या बिजली स्विच के साथ जोड़ा जा सकता है। उस संवेदना में स्त्री शक्ति का प्राण, यथोचित शक्ति है। उसी शक्ति के कारण स्त्री अपना जीवन जीने के लिए सक्षम होती है। यदि उस यथोचित शक्ति पर कोई प्रहार करता है तो उसकी सक्षमता कम हो जाती है। यह तब होता है जब उसपर कोई भी चीज अति लादी जाती है। उसका ज्यादा प्रयोग होता है। तब वह स्त्री प्रतिरोध का माध्यम अपना कर क्रोधित हो जाती है। वह बिजली जैसे कड-कड़ाकर विरोध करती है। समय पड़ा तो वह बिजली भी तोड़ने को तैयार हो जाती है। अतः वह उस अति पर प्रहार ही करती है।
इस प्रकार से कवयित्री सरितासिंह बड़ाईक ने अति कविता के माध्यम से स्त्री के ऊपर हो रहे अन्याय-अत्याचार का प्रतिरोध किया है।
1 टिप्पणी:
Bahut sundar
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