सोमवार, 14 अप्रैल 2025

अनुज लगुन के ग्लोब काव्य में इंसानियत की झुकी गर्दन !! Anuj Lugun Ke Glob Kavy Mein Insaniyat ki jhuki gardan!!


अनुज लगुन के ग्लोब काव्य में इंसानियत की झुकी गर्दन

Dr. Dilip Girhe


ग्लोब

मेरे हाथ में क़लम थी 

और सामने विश्व का मानचित्र 

मैं उसमें महान दार्शनिकों 

और लेखकों की पंक्तियाँ ढूँढ़ने लगा 

जिन्हें मैं गा सकूँ 

लेकिन मुझे दिखाई दी 

क्रूर शासकों द्वारा खींची गई लकीरें 

उस पार के इंसानी खून से

इस पार की लकीर 

और इस पार के इंसानी खून से 

उस पार की लकीर


मानचित्र की तमाम टेढ़ी-मेढ़ी

रेखाओं को मिलाकर भी 

मैं ढूँढ नहीं पाया 

एक आदमी का चेहरा उभारने वाली रेखा 

मेरी गर्दन ग्लोब की तरह ही झुक गई 

और मैं रोने लगा


तमाम सुनाए-बताए 

को दरकिनार करते हुए 

आज मैंने जाना

ग्लोब की गर्दन झुकी हुई क्यों है।

-अनुज लगुन


काव्य संवेदना: 

कलम की संवेदनशीलता ने साहित्य को एक जीवंत रूप दे दिया है। जब लेखक के हाथ में कलम होगी तो वह दुनिया की किसी भी मानचित्र को रेखांकित कर सकता है। वह कार्य कवि अनुज भाई अपनी कलम के माध्यम से दर्शाने का काम करते हैं। जब वे कलम लेकर बैठते हैं तो उनके सामने दुनिया के बड़े-बड़े दार्शनिक सामने आते हैं। ताकि वे उनकी लेखन की प्रशंसा कर सकें। बावजूद इसके कवि को एक क्रूर शासकों द्वारा लिखी गई लकीरें ही सामने दिखाई दी। उस लकीरों में इंसान का खून बहने का वे दृश्य महसूस करते हैं। 

कवि कहते हैं कि इन तमाम लकीरों को पढ़ने के बाद भी मैं एक इंसानियत का चेहरा खोजने वाली लकीर को खोज नहीं पाया हूँ। जो लेकिन एक सच्चा इंसान का चेहरा उभारने के लिए मदद कर सकें। यह सब देखने के बाद कवि की गर्दन झुक जाती है और वे दुःख की भावनाओं से रोने लगते हैं। एक गर्दन एक सामान्य कवि की नहीं बल्कि पूरे ग्लोब की गर्दन है। जो झुकी हुई दिखाई देती है। स प्रकार से कवि ग्लोब कविता में इंसानियत की गर्दन किस प्रकार से झुकी हुई है इसका ताजा उदाहरण देते हैं।

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