बाबाराव मड़ावी की कविता में बाबासाहेब एवं संवैधानिक पक्ष
Dr. Dilip Girhe
बाबासाहेब
बाबासाहेब
आपके दिखाए हुए मार्ग पर चलते समय
ये बीच में पत्थर कैसे
हमारे पैर टकराते हैं
खून निकलता है पैरों से
लोकतंत्र को रोकने वाले ये कौन हैं।
हमारे मार्ग पर
अडचनें निर्माण करने वाले ये कौन हैं।
बाबासाहेब
आपके संविधान के पन्ने
भूखे-प्यासे मनुष्यों में
स्वतंत्रता और समता लाने के लिए
फड़फड़ा रहे हैं
इन्कलाब बोल रहे हैं
तब भी यहाँ के
मानवता के पुजारी
अपने हाथ में नंगी
तलवारें लिए घूम रहे हैं!
बाबासाहेब
वे जातिवाद के फंदे में
आज भी फंसे हुए हैं
आपके कहने पर
हमने शांति का मार्ग अपनाया
तलवारों के घावों को सहा..!
बाबासाहेब
अब हम कहाँ तक सहेंगे
असमानता को
अब हम समानता को लाने के लिए
युद्ध की रणभूमि के भीम सैनिक बन गए हैं!
-बाबाराव मड़ावी (रचना मराठी से हिंदी अनूदित है)
-अनुवाद-Dr-Dilip Girhe
काव्य संवेदना-
प्राचीन काल से भारतीय समाज व्यवस्था वर्ण आधारित रही है। जिसके चलते शूद्रों को सबसे निचले पायदान पर रखा गया था। डॉ बाबासाहेब अंबेडकर ने इन व्यवस्था को समाप्त करने के लिए अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने सम्पूर्ण समाज व्यवस्था का अभ्यास करके भारतीय संविधान की निर्मिति की है। ऐसे वर्ण व्यवस्था का पर्दाफाश करने के लिए साहित्य में भी दलित, आदिवासी एवं बहुजन साहित्यकारों ने अपने साहित्य में आक्रोश दिखाया। उन्होंने वर्णव्यवस्था के अनेक संदर्भ अपने साहित्य में कथा, कविता एवं निबंध के माध्यम से व्यक्त किए हैं। ऐसा ही वर्णन मराठी के आदिवासी साहित्यकार बाबाराव मड़ावी 'बाबासाहेब' कविता में करते हैं। वे कहना चाहते हैं कि बाबासाहेब ने भारतीय संविधान की निर्मिति कर समतामूलक समाज स्थापित करने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आज भी दलितों का जाति के आधार पर कहीं न कहीं शोषण होता हुआ दिखता है। यह शोषण अकादमिक हो या सामाजिक हो। इसी वजह से दलित साहित्य आज उभरकर आया हुआ है। यह साहित्य दलितों का आक्रोश है। लेखक कहते हैं कि बाबासाहेब ने जो समतामूलक मार्ग दिखाया है। उस मार्ग में कई प्रकार के अड़चने आ रही हैं। लेखक व्यवस्था पर प्रहार करता है। आज भी भारतीय संविधान को सही तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है। जिसकी वजह से दलित, आदिवासी एवं बहुजनों को बहुतांश बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पाती। इसका इसका सब आज भीम सैनिक बनकर कर रहे हैं। इस प्रकार से बाबाराव मड़ावी अपनी कविता बाबासाहेब में प्रतिरोध दर्ज करते हैं।
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